शुक्रवार, 7 मई 2010

मां ने बेटी का गला घोंटा .... देश में फ़ांसी देने के लिए अभी जल्लाद नहीं हैं ....



अभी हाल ही में एक साथ ये दोनों खबरें पढ लीं । पहली ये कि एक मां ने अपनी पत्रकार बेटी का गला घोंट कर मार डाला । मुझे लगा वाह इत्ती तरक्की मां ने भी कर ली , अब तक तो सुना था कि माएं अपनी कोख में ही बेटियों को मार रही हैं , मगर अब तो बाकायदा एक बालिग बेटी को ही फ़ंदा लगा कर उसका गला घोंट कर मार दिया उसकी मां ने । अब कौन कह सकता है भारत में नारी शक्ति कमज़ोर है । सुनो भाई ..किसी दूसरे को .दूसरों को मारना , और मरने के लिए छोड देना बहुत आसान होता है कोई भी कर सकता है , अब प्रियभांशु ने किया न अभी अभी , मगर किसी अपने को मारने के लिए बहुत बडा कलेजा होना चाहिए जी ..ओह हां बहुत बडी सी नाक भी होनी चाहिए , लो नाक नहीं होगी तो उसके कटने के डर से फ़िर आप अपनी बेटी का गला कैसे घोंट पाओगे ..छोडो यार ये कहां उलझ गया बेकार आगे पढते हैं ,,


देश में फ़ांसी देने के लिए अभी जल्लाद उपलब्ध नहीं हैं....। आयं ये क्या बात हुई भाई ..ये अचानक फ़ांसी की बात ...अबे क्या सीरीयसली ले लिया क्या किसी ने फ़ांसी की सजा को जो जल्लाद की ढूंढ शुरू हो गई । रिलैक्स यार ..जस्ट चिल्ल ....यहीं फ़ांसी वांसी तो मिलती ही रहती है ..देते थोडी हैं । ओहो नहीं समझे ..हमरे बिहार में जईसे थ्योरी और प्रैक्टिकल का पेपर होता है न थ्योरी हम देते हैं ..प्रैक्टिकल पेपर ..हम लोग प्रैक्टिकली देते नहीं हैं ...ओहोहो ..अबे कहां फ़ंस गया इस प्रैक्टिकल के चक्कर में । अरे यार आप तो बस ये समझो कि जब सरकार इत्ते पैसे खर्च करती है तो फ़िर उसका रिजल्ट इतना तो देना ही पडता है न । खैर , अच्छा कसाब के फ़ैसले पर जल्लाद की रिक्वायर्मेंट हुई है ।

अरे तो मिल नहीं रहा मतलब । अबे इस देश में जल्लाद की कौन कमी है बे । हर घर में , गली में , चौराहे पर , दफ़्तरों में और यहां तक संसद में भी किसिम किसिम के जल्लाद अवैलेबल हैं भाई । जैसा चाहिए डिमांड करिए मिल जाते हैं , और कोई जरूरी भी नहीं है कि आप डिमांड करिए तभी मिलते हैं वैसे भी मिल जाते हैं ।अच्छा अच्छा वो फ़ांसी वाला चाहिए , वो गले में फ़ंदा डाल कर टांगने वाला , तो ऐसे बोलो न ...वो जो हर साल अपनी बहूओं को वाया दहेज़ बहाना ..पंखों पर टांगते हैं वे चलेंगे क्या ? अच्छा ओनली फ़ौर मेल्स वाला कोई क्रायटेरिया तो नहीं फ़िक्स है न ?



यार क्या बहाने बाजी है ..आप डेट बताओ ..जल्लाद हम भेज देंगे , अपने फ़न्नु मियां कल अदालत की तारीख भुगतने आए थे तो कह रहे थे कि झाजी अब इस चोरी डकैती में प्रौफ़िट मार्जिन कम हो गया है जब से ये साले नेता भी इन सब में उतर गए हैं । हम सोच रहे हैं लोगों को मारने का काम शुरू किया जाए सुना है सरकार इन कामों को करने वालों पर भी करोडों खर्च कर रही है । तो कहिए कहूं क्या फ़न्नू मियां को ....आईये जल्लाद की जरूरत है ..औफ़िशियली ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. अखबारों की हेड लाईन्स भरी रहती है हत्याओं की खबर से ....और हमें एक जल्लाद नहीं मिलता ...
    आश्चर्य ...!!

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  2. ........मुझे लगा वाह इत्ती तरक्की मां ने भी कर ली , अब तक तो सुना था कि माएं अपनी कोख में ही बेटियों को मार रही हैं , मगर अब तो .....

    Indeed shameful !

    Insaan ki insaaniyat aur maan ka mamatva, dono hi marr rahe hain.

    Vehshipan ki hod lagi hai.

    Kon sabse bada vehshi-darinda hai!

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  3. jallaad dhoodhan mai chalaa
    jallaad milaa naa koi
    jo ghar mai dhoodhan lagaa
    ghar ghar jallaad hoy

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  4. अख़बारों की सुर्खियां देखकर तो यही लगता है कि यहां-वहां...हर तरफ़ जल्लाद ही जल्लाद हैं...

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  5. कसाब को उसकी माँ के पास भेज दो...

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  6. Kabhi-kabhi subah-subah Akhbaar padhne ke baad sara din man mein halchal see machi rahti hain ki ek taraf desh ke vikas kee baat hoti hain to dusari or insaan kyun apni insaaniyat bhulta jaa raha hai....
    ....Vartmaan yatharth chitran ke liye abhar..

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  7. सार्थक विवेचना करती पोस्ट / अजय जी इन नापसंदियों या पसंदियों की चर्चा न करें ,क्योकि आपका काम है कुछ सार्थक लिखना ,लोगों का काम है, पसंद ना पसंद करना ,उसके लिए क्या सोचना / वैसे मुझे काफी पसंद आई आपकी यह विवेचना /

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  8. aapke lekh ko padne me kafi jugaad karna padta hai, iska templete change kijiye,

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हमने तो खबर ले ली ..अब आपने जो नज़र डाली है..उसकी भी तो खबर किजीये हमें...