खबर :- पाकिस्तान से जुड रहे पुणे विस्फ़ोट के तार .......
नज़र :- नहींssssss !!! कह दो ये झूठ है । सरारस सफ़ेद झूठ । ऐसा कैसे हो सकता है , पाकिस्तना ऐसा कैसे कर सकता है ...पाकिस्तान तो हमारा पडोसी देश है , हमारा छोटा भाई है । उनके खिलाडियों , कलाकारों , फ़नकारों के तार बेशक हमसे जुडे हो सकते हैं , । हालांकि इस बार खिलाडियों के मामले में जरूर थोडा सा कनेक्शन आऊट और रेंज़ हो गया था , मगर इसके लिए तो हमारे बादशाह खान ने सरेआम अपनी परेशानी और चिंता जाहिर भी कर दी है । मेरी तरह एक आम आदमी यही सोच के परेशान है कि ...पाकिस्तान के तार विस्फ़ोट से .....पाकिस्तान जैसे शांतिप्रिय, सहनशील, सहिष्णु ..(और भी जितने विशेषण हैं जोड लें , ) देश के तार कैसे जुड सकते हैं । क्या कहा .....ये कौन सी नई बात है ये तो हमेशा की कहानी है, अमां जब ये हर बार की कहानी तो फ़िर क्यों बार बार यही राग अलापते हो यार ? कभी तो किसी बरमूडा, होनोलुलू , टिम्बकटु का नाम लो, उनसे तार जोडो न ।____________________________________________________
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नज़र :- अमां क्या के रिये हो भाई मियां ,? चार साल से पहले बच्चों पर पढाई का बोझ । राम राम राम कैसा जमाना आ गया है यार , हमारे जमाने में तो पांच साल के बाद भी जब स्कूल जाना शुरू किया था तो जाते समय आर्केस्ट्रा की वो धुन बजाया करते थे कि पूरे मुहल्ले को पता चल जाता था कि छोटे झाजी स्कूल चले हैं । और आप बच्चों पर पढाई का बोझ की बातें कर रहे हो । हम तो कहते हैं कि बच्चे अपने बस्ते का बोझ उठा के इतने मजबूत हो जाते हैं कि आप चाहो तो उनसे ईंट पत्थर की ढुलाई करवा लो । बच्चों का तो पता नहीं , और पता क्या नहीं ये उनके बस्तों के वजन , जो खुद उन बच्चों से शायद थोडा ही कम ज्यादा होता हो , से पता चल जाता है । मगर फ़ीस और डोनेशन का जो गज़ब का वजन इन दिनों अभिभावकों पर पड रहा है ,उसने तो उनकी कमर ही तोड कर रख दी है । तभी तो आजकल कोई माता पिता अपनी पीठ पर बच्चों को बैठा कर हाथी घोडे की सैर नहीं कराता । बोझ कम करने के लिए कुछ तो किया ही जाए अब
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नज़र :- उफ़्फ़ !!! क्या मुसीबत है ? यार इन खिलाडियों को कोई समझाता क्यों नहीं ? यदि अच्छे फ़ार्म की स्टेबिलिटि नहीं बनाए रख सकते तो कम से कम खराब फ़ार्म वाली फ़ार्म तो बनाए रखनी चाहिए कुछ दिन । अभी दो दिन पहले ही तो मीडिया बंधुओं ने इतनी मेहनत से सबकी कुंडली बनाई थी , टोकरे भर भर के एक्सक्लुसिव रपटें बनाई थी , कि देखो हमारे ये महान खिलाडी कितना गंदा खेल रहे हैं , अपना तो अपना, हमारे जैसे सेंटी दर्शकों की भावनाओं के साथ खिलवाड करते हुए उनका भी अपमान कर रहे हैं । इन्हें कोई हक नहीं कि इतना सम्मान, नाम दाम मिले । इनकी इतनी घटिया परफ़ार्मेंस को देखते हुए क्रिकेट को भी जल्द ही राष्ट्रीय खेल घोषित कर देना चाहिए , जब हाकी जैसा हाल होगा न इनका तो पता चलेगा कि कैसा लगता है ? सारी विज्ञापन कंपंनियां भी सोचने लगी थीं कि , चलो यार , छोडो इनको , सानिया सगाई टूटने के बाद फ़्री है , उसीसे कुछ विज्ञापन करवाते हैं ।............मगर हाय रे फ़ूटी किस्मत , अब ये इस मैच में फ़िर खेलने लगे ....अब फ़िर से वही सब करना पडेगा .....माद्दा वाले खिलाडी हैं , जुझारू टीम है .....आदि आदि .....कित्ती टेंशन है भाई इस क्रिकेट में । अपना राष्ट्रीय खेल ही ठीक है ....और अबके तो सुना है सब कह रहे हैं फ़िर से दिल दो हाकी को ..पता नहीं वेल्नटाईन पर किसी ने दिया कि नहीं